हीमोग्लोबिनोपैथी (थैलेसीमिया और सिकल सेल रोग) हीमोग्लोबिन में पाई जाने वाली विकृतियाँ हैं। थैलेसीमिया में हीमोग्लोबिन की संरचना में विकृतियाँ होती है, जबकि सिकल सेल एनीमिया में लाल रक्त कोशिका का आकर हँसिया (सिकल) जैसा हो जाता है। जिससे मरीज गंभीर रूप से एनेमिक (रक्त अल्पता) हो जाता है और उनके रक्त की ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता में कमी हो जाती है।
- यह बीमारियाँ रुग्णता और मृत्यु दर का एक महत्वपूर्ण कारण होते हैं और साथ ही कई परिवारों और हमारे देश के स्वास्थ्य क्षेत्र पर भारी आर्थिक बोझ डालते हैं।
यह बीमारियाँ किसे प्रभावित करती हैं?
यह बीमारियाँ किसी को भी प्रभावित कर सकती हैं, लेकिन करीबी समुदायों में विवाहों के चलन के कारण आदिवासी जनजातियों में यह अधिक पाया जाता है।
इसका क्या कारण होता है?
हीमोग्लोबिनोपैथिस (थैलेसीमिया और सिकल सेल रोग) लाल रक्त कोशिकाओं के अनुवांशिक विकार हैं। जीन में रुपांतरण (म्युटेशन) रोग का कारण बनता है।
यह बीमारी कब होती है?
जब कोई व्यक्ति अपने दोषपूर्ण जीन होने के बाद भी किसी अन्य व्यक्ति से शादी करता है, तब वह अपने वंश में ऐसे रोगों को प्रसारित कर सकता है। कुछ विशेष अनुवांशिक संयोजन रोग की गंभीरता को तय करता है।
इस बीमारी के कितने रूप हैं?
यह दो प्रकार के होते हैं, होमोजायगस (बीमारी का गंभीर रूप) में दो रुपांतरित (म्युटेटेड) जीन होते हैं, और हीट्रोजायगस (लगभग सामान्य व्यक्ति) जिनमें एक रुपांतरित (म्युटेटेड) जीन होते हैं।
जनसंख्या और क्षेत्र- इस रोग से कितने लोग प्रभावित हैं और क्या ये कुछ क्षेत्रों में ही सीमित हैं ?
आँकड़े
- भारत में थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है – लगभग 1 से 1.5 लाख और लगभग 4.2 करोड़ लोग ß (बीटा) थैलेसीमिया के वाहक हैं।
- थैलेसीमिया मेजर रोग वाले लगभग 10,000 -15,000 बच्चे हर साल पैदा होते हैं।
- सिकल सेल रोग कुछ क्षेत्रों में कई समुदायों को प्रभावित करता है, जैसे कि मध्य भारत और गुजरात, महाराष्ट्र और केरल। सिकल सेल जीन का वाहक प्रबलता 1 से 35% तक होता है और इसलिए सिकल सेल रोग वाले लोगों की एक बड़ी संख्या होती है।
- दुनिया की आबादी का अनुमानित 7% एक असामान्य हीमोग्लोबिन जीन से ग्रस्त होता है।
- लगभग 300,000 -500,000 बच्चे गंभीर हीमोग्लोबिन विकारों के साथ प्रतिवर्ष पैदा होते हैं।
- सिकल सेल सिंड्रोम ज्यादा पाया जाता है और दुनिया भर में जन्म लेने वाले लगभग 70% प्रभवितों में ये रोग पाया जाता है और बाकी थैलेसीमिया रोग से ग्रस्त होते हैं।
- इन बीमारियों में थैलेसीमिया रोग का प्रमुख भार होता है क्योंकि दोनों बीमारियों के प्रबंधन के लिए मरीज को आजीवन रक्त आधान (खून चढ़ाना) और विशेष दवाओं के साथ शरीर से अतिरिक्त लोह तत्व को हटाने की आवश्यकता होती है।
- सिकल सेल रोग (SCD) को आजीवन प्रबंधन की आवश्यकता होती है और यह नवजात और बच्चों की रुग्णता और मृत्यु दर का प्रमुख कारण होता है।
- भारत में, थैलेसीमिया का अधिक प्रसार कुछ समुदायों में देखा गया है, जैसे कि सिंधी, पंजाबी, गुजराती, बंगाली, महार, कोल, सारस्वत, लोहाना और गौर।
- सिकल सेल रोग दक्षिणी, मध्य और पश्चिमी राज्यों की जनजातीय आबादी में अत्यधिक प्रसारित है, जो कुछ समुदायों में 48% तक पहुंच गया है।
क्या सावधानियां लागू की जा सकती हैं?
- शादी से पहले भावी दंपत्ति को रूपांतरित (म्युटेटेड) दोष जीन की पहचान के लिए अपने रक्त का परीक्षण करवाना चाहिए। रक्त परीक्षण इलेक्ट्रोफोरेसिस या एचपीएलसी के माध्यम से किया जा सकता है। उनकी हीमोग्लोबिनोपैथी की स्थिति के अनुसार उन्हें शादी करने या न करने का फैसला करना चाहिए।
उपलब्ध उपचार:
एकमात्र उपलब्ध इलाज है अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण (बोन मेरो ट्रांसप्लांटेशन – बीएमटी) है। क्यूंकि इस प्रक्रिया की लागत 1 करोड़ रुपये है, और बीएमटी केंद्रों की कमी, या एक उपयुक्त एचएलए मिलान दाता की अनुपलब्धता जैसे कारणों से इससे कुछ ही मरीजों को मदद मिल सकती है। इसलिए, उपचार का मुख्य आधार नियमित रूप से खून चढ़वाना (रक्त आधान) है, जिसके बाद शरीर से अत्यधिक लोह तत्व को हटाने के लिए नियमित रूप से मॉनिटर करना पड़ता है और मरीज को iron chelation therapy का उपचार देना पड़ता है – जो की कई रक्त आधानों के दुषपरिणाम है। इस प्रकार यह एक खून चढ़वाने की निरंतर प्रक्रिया पर निर्भर विकार है और स्वास्थ्य सेवाओं पर एक बड़ा बोझ डालता है।
इज़राइल में किए गए एक लागत / लाभ विश्लेषण के अनुसार, उत्तरी इज़राइल में औसत जीवन प्रत्याशा के लिए एक रोगी के उपचार की लागत $ 2,000,000 और एक वर्ष के लिए थैलेसीमिया नियंत्रण कार्यक्रम चलाने की लागत $ 400,000 थी। इस प्रकार पीड़ित लोगों के उपचार के बजाय, इस रोगों का रोकथाम अत्यंत प्रभावी है।
भारत में, ट्रांसफ़्यूजिंग और chelating प्रक्रिया की लागत वर्ष 2008 में एक वर्ष के लिए 200,000 रुपये अनुमानित की गई थी। हर साल थैलेसीमिया मेजर के साथ 10,000 बच्चों के जन्म का अनुमान है, और 50 साल तक जीवित रहने के साथ, 500,000 बच्चों (10,000 x 50) के उपचार की लागत 10,000 करोड़ रुपये होगी।
उत्तराखंड में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत वित्त निधि और कार्यान्वित पायलट प्रोजेक्ट के अनुभव के आधार पर, एक लाख किशोरों की स्क्रीनिंग की लागत 1 करोड़ रुपये आंकी गई थी।
विश्वव्यापी रोकथाम कार्यक्रम का प्रभाव
साइप्रस में, यह अनुमान लगाया गया था कि यदि रोकथाम के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया था, तो बीस साल की अवधि में अनुमानित रक्त चढ़वाने की आवश्यकता में 1: 1000 से 1: 138 और 600% तक प्रभावित जन्मों की व्यापकता में वृद्धि होगी।
रोकथाम और नियंत्रण कार्यक्रम के एक सफल कार्यक्रम ने थैलेसीमिया से प्रभावित लोगों की जन्म दर को लगभग शून्य कर दिया है और एक संवर्धित देखभाल कार्यक्रम ने प्रभावितों को अपना जीवन सरलता से जीने में सक्षम बनाया है।
इटली के सार्डिनिया में, स्वैच्छिक वाहक स्क्रीनिंग कार्यक्रम की शुरुआत 1975 में की गई थी और इसने थैलेसीमिया के विस्तार को 1: 250 से घटाकर 1: 4000 कर दिया था।
इटली के लेटियम में, तीन दशक से अधिक समय तक माध्यमिक स्कूली बच्चों और युवा वयस्कों के लिए एक स्वैच्छिक स्क्रीनिंग कार्यक्रम ने बिमारी से प्रभावित जन्मों के विस्तार को शून्य तक पहुंचा दिया है।
मॉन्ट्रियल, कनाडा में, थैलेसीमिया के लिए हाई स्कूलों में एक सफल स्वैच्छिक स्क्रीनिंग कार्यक्रम 1980 में शुरू किया गया था और इससे थैलेसीमिया की घटनाओं में 95% की कमी आई है।
उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि एक प्रभावी रूप से कार्यान्वित रोकथाम और नियंत्रण कार्यक्रम सफलतापूर्वक थैलेसीमिया से प्रभावित बच्चों के जन्म को कुछ समय के बाद लगभग शून्य कर सकता है।
यह प्रक्रिया रोग के बोझ को कम करता है और कार्यक्रम के कार्यान्वयन से पहले पैदा हुए रोग से प्रभावित और जीवित लोगों की बेहतर आजीवन देखभाल करने में सक्षम बनाता है।
भारत में रोकथाम कार्यक्रम:
WHO ने नियंत्रण कार्यक्रम के तथ्यों को निम्न प्रकार से सूचीबद्ध किया है:
– एक मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और समर्थन
– कर्मचारियों, उपकरणों और रसायनों के लिए पर्याप्त धन
– प्रभावित लोगों का सर्वोत्तम उपचार
– कैरियर (वाहक) स्क्रीनिंग
– जेनेटिक काउंसलिंग, शादी से पहले या बच्चे के जन्म पूर्व
– उन जोड़ों में जन्मपूर्व निदान जहां दोनों साथी रोग वाहक हैं
– समुदाय में जागरूकता कार्यक्रम, स्कूलों से कार्यक्रम की शुरुआत
– कार्यक्रम की निगरानी
नई खोज – क्या है?
आईडी कार्ड – तकनीक की मदद से बीमारी की रोकथाम का एक बहुत ही सरल और सस्ता तरीका। अब कोई भी व्यक्ति घर बैठे बीमारी को मिटाने में एक सराहनीय योगदान दे सकता है।
यह किसकी मदद करता है?
– यह कार्ड देश के 20 करोड़ से अधिक लोगों पर सकारात्मक प्रभाव डालेगा।
यह कैसे मदद करता है?
वर्तमान में उपलब्ध विकल्प | GIPCI कार्ड के लाभ |
हाइड्रोक्सीयूरिया + फॉलिक एसिड + ब्लड ट्रांसफ्यूजन + केलेशन थैरेपी – (जीवन भर), लागत प्रति वर्ष 2 लाख रु।बीएमटी (बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन) की लागत 1 करोड़ रुपये और 82% सफलता दर है।सिकल सेल थैलेसीमिया रक्त परीक्षण के लिए रु 700 / – देना पड़ता है। | रु 200 / – से 400 / – के एक कार्ड से करोड़ों रुपये की बचत हो सकती है – यह कार्ड एक स्वस्थ समाज बना सकता है। रोग के कम मामलों के कारण स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ कम होगा। कम बीमारी के कारण, सरकारी खजाने पर वित्तीय बोझ में सुधार होगा।प्रति वर्ष 10,000 करोड़ रुपये की बचत। |
जेनेटिक काउंसलर का वेतन रु 7,00,000 प्रति वर्ष है x 89 blocks, दो काउंसलर का वेतन = रु 12.50 करोड़ प्रतिवर्ष की आवश्यकता है।75,000 से अधिक लोगों के लिए एक काउंसलर।हमारे पास देश में बहुत कम 100 जेनेटिक काउंसलर हैं। यहां तक कि बड़े संस्थानों में भी काउंसलर की कमी है। | जेनेटिक काउंसलर के पास जाने की जरूरत नहीं, समय, ईंधन की बचत होगी।घर के बुजुर्ग, आशा कार्यकर्ता और लोग स्वयं, अपने बच्चों में बीमारी की संभावना की पहचान और परामर्श अराम से अपने घर से ही कर सकेंगे।तथाकथित सबसे कठिन काम, अब बहुत सरल और आसान है।बिना किसी लागत पर अनगिनत बार मैच करके स्वयं काउंसलिंग कर सकते हैं। |
प्रत्येक मौसमी परिवर्तन से व्यक्ति का स्वास्थ्य बिगड़ता है, प्रति वर्ष कम से कम 4 बार मरीज को अस्पताल में भर्ती करना पड़ता है। | असाध्य रोग का हमेशा के लिए निवारण।अस्पताल में भर्ती करने की कोई आवश्यकता नहीं है। |
इसकी कीमत क्या है?
200/- से 400 /- रुपये प्रति कार्ड
इसका उपयोग कैसे किया जा सकता है?
- खून की जांच – प्रारंभिक जांच (घुलनशीलता, नेस्टरोफ्ट परीक्षण) – परिणाम की पुष्टि हेतु (एचपीएलसी, इलेक्ट्रोफोरेसिस परीक्षण)।
- खून की रिपोर्ट के आधार पर GIPCI कार्ड जारी किया जाता है।
- कार्ड मिलान: शादी से पहले भावी जोड़े के कार्ड का मिलान परिणाम देखने के लिए किया जाता है।
GIPCI (जिप्सी) कार्ड का उपयोग करना कितना आसान है?
GIPCI (जिप्सी) कार्ड का उपयोग करने के लिए, महिला GIPCI (जिप्सी) कार्ड के उपर पुरुष GIPCI (जिप्सी) कार्ड रखें, सही परिणाम के सामने एक थ्रू होल (छिद्र) दिखाई देगा और अन्य सभी के सामने एक क्रॉस मार्क ⓧ दिखाई देगा।
- यह GIPCI (जिप्सी) कार्ड बच्चों में बीमारी की संभावना / दम्पति के विवाह होने कि सम्भावना / उनके% / उचित / अनुचित चीजों को बताता है।
- GIPCI Card
- G – Genetic
- I – Inheritance
- P – Pattern
- C – Counselling
- I – Identification card
GIPCI कार्ड के लाभ:
- यह कार्ड स्कूल में मरीजों की पहचान कर उन्हें पीटी या कड़ी मेहनत से राहत देने में मदद करता है, शिक्षक को रोगग्रस्त बच्चे को बार-बार पानी पीने के लिए याद दिलाने में मदद करता है, रोगी बच्चे को धूप में न खड़े करने के लिए भी कार्ड स्कूल स्टाफ या घर के सदस्य को याद दिलाता रहता है।
- मरीज को ख़ून चढ़वाने के लिए (रक्त आधान) स्वास्थ्य कर्मचारी को तुरंत मरीज के रक्त समूह की पहचान बताता है।
- यह कार्ड डॉक्टरों को इस बीमारियों से पीड़ित मरीजों को विपरीत दवाओं को निर्धारित नहीं करने की चेतावनी देता है।
- शादी से पहले कार्ड मिलान के बाद बच्चों में सिकल सेल और थैलेसीमिया रोग की संभावना की पहचान के साथ क्या करना है, इसकी जानकारी देता है ।
- काउंसलिंग वीडियो, क्यूआर कोड स्कैन।
- कुंडली मिलान की तुलना में GIPCI (जिप्सी) कार्ड का मिलान अधिक महत्वपूर्ण है।
इन पेटेंट कार्ड का आविष्कार किसने किया?
भोपाल के शोधकर्ता दंपति, सरकारी होम्योपैथिक कॉलेज और अस्पताल के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ निशांत नंबिसन, और डॉ स्मिता नंबिसन के ने एक पूर्वानुमान कार्ड का आविष्कार किया है जो एक विवाहित जोड़े के बच्चों में होने वाले मोनोजेनिक विकार का सटीक पूर्वानुमान लगाता है। यह चिकित्सा विज्ञान में एक क्रांति साबित होगी।
प्रेरणा:
जापान के दौरे पर जीन थेरेपी पर काम करने वाले वैज्ञानिकों से मिलने के बाद वहां से लौटते समय प्रधानमंत्री मोदी ने देश के शोधकर्ताओं से इसके लिए स्थायी इलाज खोजने की अपील की:
सिकल सेल, थैलेसीमिया रोग विशेष रूप से अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के लोगों में पाया जाता है, यही उनकी बढ़ती मृत्यु दर और रुग्णता दर का कारण है। यह बीमारी उनकी गरीबी का एक बड़ा कारण भी है।
प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में इस बीमारी को कैंसर से भी भयानक बीमारी बताया है। https://www.youtube.com/watch?v=iM-pa0OEEsQ